Manish Kashyap, Editor In Chief…
रुद्रपुर।दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद आज सिंदुर खेला की परंपरा निभाई जा रही है… इस दिन सुहागिन महिलाएं माता के नाम के सिंदुर से होली खेलती हैं. बताते चले की ट्रांजिट कैंप की दुर्गा पूजा पूरे तराई मैं मशहूर है करीब 450 सालों से चली आ रही पूजा की परंपरा है… वहां दुर्गा पूजा के लिए तैयार किए गए पंडालों में देवी का आह्वान किया गया और अब उन्हीं पंडालों में सिंदूर खेला की रस्म निभाई जा रही है..
मां को पान से लगाती हैं सिंदूर
सिंदूर खेला के दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श कर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं.. फिर मां को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है..
दशहरा पर धरती से कैलाश के लिए विदा होती हैं मां दुर्गा।
मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं…10वें दिन यानि दशहरा के दिन मां दुर्गा की धरती से विदाई होती है.. इस मौके पर सुहागिन महिलाएं दुर्गा को सिंदूर चढ़ाकर विदाई देती हैं और उनका आर्शीवाद लेती हैं और कहती हैं ‘आश्चे बछोर आबार होबे’ इसका मतलब ये कि अगले बरस फिर ये त्योहार हो..
24 अक्टूबर को मंगलवार होने के कारण दुर्गा विसर्जन दशहरा पर नहीं किया गया।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलवार के दिन बेटी को विदा नहीं करते हैं, मान्यताओं के कारण माता की प्रतिमा का विसर्जन आज बुधवार को किया जा रहा है।