रुद्रपुर। यह वर्ष विदाई की ओर अग्रसर है और आने वाले साल 2023 में नगर निगम के चुनाव होने हैं। रुद्रपुर मेयर की सीट पर कई नेताओं की नज़र है और मेयर बनने की महत्वाकांक्षा रखने वालों ने तैयारी भी शुरू कर दी है, लेकिन वर्तमान मेयर रामपाल सिंह की फिर से लाटरी निकलने वाली है।
दरअसल, रुद्रपुर मेयर की सीट आरक्षित है। माना जा रहा है कि इस पर आरक्षण क्रम नहीं बदलने में भाजपा को फायदा है। भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि यदि सीट अनारक्षित हुई तो यह सीट भाजपा के खाते से छिन सकती है। पहले तो भाजपा में ही कई नेता मेयर के लिए तैयारी कर रहे हैं। सीट अनारक्षित होने पर इन नेताओं में टिकट के लिए सिर फुटब्बल की नौबत आ सकती है और भाजपा को भितरघात की स्थिति से गुजरना पड़ सकता है। दूसरे मेयर की सीट अनारक्षित होने की स्थिति में भाजपा से दो बार विधायक रह चुके राजकुमार ठुकराल अपने भाई संजय ठुकराल को किसी राष्ट्रीय दल अथवा निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। यहां बता दें कि संजय ठुकराल की बस्तियों में न सिर्फ अपनी अलग पहचान है, बल्कि वह लोकप्रिय भी हैं। जनता के सुख-दुख में वह शामिल होते रहे हैं।
वहीं, अनारक्षित सीट पर कांग्रेस पूर्व पालिकाध्यक्ष मीना शर्मा अथवा पार्षद मोहन खेड़ा जैसे दमदार प्रत्याशी मैदान में उतार सकती है। दरअसल पिछले चुनाव में नजूल भूमि पर मालिकाना हक देना बड़ा मुद्दा रहा था, लेकिन नजूल भूमि पर गरीबों को मालिकाना हक नहीं मिल सका। हालांकि सरकार पॉलिसी तो लाई, लेकिन जनता लाभ से वंचित रही।
मेयर की सीट अनारक्षित होने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नजदीकी माने वाले विकास शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता भारत भूषण चुघ जैसे युवा चेहरों को मौका मिल सकता है।
सीट आरक्षित रखने में भाजपा को फायदा यह है कि मौजूदा मेयर रामपाल सिंह का कोई विकल्प अभी तक नहीं दिख रहा है। रामपाल सिंह की ईमानदार छवि, सादगी और जनता के साथ बेहतर संवाद उनकी कामयाबी की वजह बन सकता है। मेयर को भी दोबारा मौका मिलने की बात का अंदाजा है और वह जनता के हित में कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस से पिछली बार मेयर का चुनाव लड़े नंदलाल ने कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया था। सीट आरक्षित रहने पर कांग्रेस को फिर नया चेहरा खोजना पड़ेगा।
भाजपा मेयर की सीट पर भाजपा का ही कब्जा बरकरार रखना चाहती है। ऐसे में रामपाल सिंह की लाटरी निकलनी तय है। हालांकि कुछ भाजपा नेता इस कोशिश में हैं कि यह सीट अनारक्षित हो जाए, लेकिन राजनीतिक हालात भाजपा के अनुकूल नहीं दिख रहे। बहरहाल, नगर निगम का आरक्षणक्रम तय होने के बाद स्थिति साफ होगी।