जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन शोषण के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे आसाराम के सजा निलंबन का तीसरा प्रार्थना पत्र भी खारिज कर दिया है
न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की खंडपीठ में आसाराम की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने पैरवी करते हुए कहा कि अपीलार्थी लगभग 83 वर्ष का वृद्ध है और कई बीमारियों से पीड़ित है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील में आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा को सीआरपीसी की धारा 391 सीआरपीसी के तहत साक्ष्य दर्ज करवाने के लिए तलब किया था, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इसके चलते अपील पर फिलहाल निर्णय की कोई संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि अपीलार्थी करीब नौ वर्ष और सात महीनों से न्यायिक अभिरक्षा में है। इसे देखते हुए वह जमानत का पात्र है।
अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल जोशी और पीड़िता के अधिवक्ता पीसी सोलंकी ने अपीलार्थी की ओर से दी गई दलीलों का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि अपील को एक से अधिक अवसरों पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन बचाव पक्ष ने हमेशा कोई न कोई कारण बताकर सुनवाई स्थगित करवाई। अपीलार्थी को जमानत पर रिहा करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा, क्योंकि वह गुजरात में चल रहे आपराधिक मुकदमे में हिरासत में है। गुजरात के मामले में अभियोजन के साक्ष्य हो रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि आरोपों की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए अपीलार्थी जमानत के लिए पात्र नहीं है।
गौरतलब है कि कोर्ट ने इससे पहले मार्च 2019 में सजा निलंबन का पहला प्रार्थना पत्र खारिज करते हुए आसाराम की ओर से अपील पर जल्द सुनवाई की प्रार्थना मंजूर की थी। बाद में उसी साल सितंबर में आसाराम को तब झटका लगा, जब सजा निलंबन का प्रार्थना पत्र दूसरी बार खारिज हुआ था।